Friday, December 28, 2012

मेरे प्रिय रचनाकार-अशोक रावत

          अशोक रावत नाम है एक अलग अंदाज का, एक अलग रोशनी का| दुष्यंत के बाद हिन्दी में ग़ज़ल को ज़मीनी (हारिजन्टल) विस्तार तो खूब मिला, लेकिन आसमानी (वर्टिकल) विस्तार बहुत ज्यादा नहीं। दुष्यंत की ग़ज़लों में इतनी चमक थी कि  ज्यादातर हिन्दी ग़ज़लकार उन  जैसा बनने के मोह में फंसे रहे। जिन ग़ज़लकारों ने हिन्दी में ग़ज़ल को वर्टिकल  विस्तार देने की सफल कोशिश की है, उनमें अशोक रावत जी का नाम अग्रिम पंक्ति में रखा जा सकता है। उन्होंने हिन्दी में ग़ज़ल को नयी भाषा, नये संस्कार और नयी कहन दी है, जो उनकी अपनी है। अशोक जी की ग़ज़लों को आप भीड़ में पहचान सकते हैं। यानि की उनके पास अपना मुहावरा है। ये वो गुण है, जिसकी तलाश हर साहित्यकार को रहती है। ग़ज़लों की दुनिया में पूरी उम्र गुज़ार देने के  पश्चात  भी ये हर किसी को नहीं प्राप्त होता। अशोक जी की ग़ज़लों का दूसरा गुण है कि वे कहीं से भी आयातित नहीं लगतीं। उनमें अपनी मिट्टी, अपने भाषाई सौन्दर्य और अपनी सांस्कृतिक चेतना की महक हर किसी को अपना दीवाना बना लेती  है। 15 नवम्बर, 1953  को ग्राम-मलिकपुर, मथुरा (उत्तर प्रदेश) में जन्मे अशोक रावत का एक ग़ज़ल संग्रह ‘थोड़ा सा ईमान‘ वर्ष 2003 में प्रकाशित हो चुका है। देश की लगभग हर प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिका में उनकी ग़ज़लें प्रकाशित होती रहीं हैं| संप्रति वे  भारतीय खाद्य निगम में उच्च पद पर नोएडा में पदस्थ हैं। यहां प्रस्तुत हैं उनकी कुछ ग़ज़लें........ 
                                                   

1-

जो समझते हैं कि मेरी मुश्किलों का हल नहीं है 

चेतना में उनकी शायद कोई नैतिक बल नहीं है 

... सब पता है राजपथ पर लोग क्यों चिल्ला रहे हैं 
राजमहलों में तअज्जुब है कोई हलचल नहीं है

क्या हमे समझा रहे हैं ये सियासत के सिपाही
राजधानी है जी दिल्ली ये कोई जंगल नहीं है 

वो कोई अनजान दस्तक दे रहा है,वर्ना मेरे 
गेट पर ताला नहीं है द्वार पर साँकल नहीं है 

जिस तरफ़ भी देखता हूँ गर्द है बस आसमाँ पर 
एक भी तारा नहीं है एक भी बादल नहीं है 

मैं ये वादा कर रहा हूँ अब नहीं ये सब सहूँगा 
मेरे हाथों में भले ही आज गंगाजल नहीं है


2-


सफ़ाई पर सफ़ाई दे रहा है, 

उसे भी सब दिखाई दे रहा है.

मैं कैसे चैन से घर बैठ जाऊँ,
कहीं कोई दुहाई दे रहा है.

जो गाली दुश्मनों ने भी नहीं दी,
वो गाली खास भाई दे रहा है. 

उन्हें लगता है हम उल्लू हैं, वरना, 
उन्हें सब कुछ सुनाई दे रहा है. 

मेरी तकलीफ़ को समझे बिना ही,
वो जाने क्या दवाई दे रहा है. 

मेरी ग़ज़लो, मुझे भी तो बताओ,
ज़माना क्यों बधाई दे रहा है. 

कि जैसे हम समझते ही नहीं कुछ,
वो कुछ ऐसे सफ़ाई दे रहा है.


3-


मदद के वास्ते आखिर कोई कब तक दुहाई दे,

मेरी आवाज़ संसद में किसी को तो सुनाई दे. 

तेरे लफ़्ज़ों पे अब कोई भरोसा ही नहीं करता,
तू चाहे कैमरों के सामने जितनी सफ़ाई दे. 

तेरी हर घोषणा में चाँदनी का ज़िक्र होता है, 
कभी ये चाँद पूनम का हमें भी तो दिखाई दे.

यहाँ दो वक़्त की रोटी जुटाना भी असम्भव है, 
ये किसकी चाहतों में था के तू मक्खन मलाई दे 

नज़र के सामने कुछ भी न हो, हम क्या कहें इसको, 
मगर एहसास में चलता हुआ कोई दिखाई दे. 

मुझे इंसानियत के नाम पर पूरा भरोसा है,
मुझे चिंता नहीं, कोई भलाई दे, बुराई दे. 

तअज्जुब है कि आखिर किस तरह मैं कर गुज़रता हूँ, 
क़दम रुकते नहीं तब भी, न जब कुछ भी सुझाई दे.


4-


सभी तय कर रहे हैं बस मुझी से तय नहीं होते, 

ये दिल के फ़ासले कारीगरी से तय नहीं होते. 

ज़रा सा झाँक कर तो देखिये वीरान आखों में,
सभी एहसास आखों की नमी से तय नहीं होते. 

ये कारोबार में उलझे हुए लोगों की दुनिया है, 
नज़र के फ़ैसले अब ज़िंदगी से तय नहीं होते. 

न मेरी नींद मेरी है, न मेरे ख़्वाब मेरे हैं, 
...मेरे दिन रात अब मेरी ख़ुशी से तय नहीं होते. 

छुपा होता है कोई दर्द ही हर मुस्कराहट में,
कभी सुख चैन होठों की हँसी से तय नहीं होते. 

हमें कोई बताए तो कि आख़िर माजरा क्या है, 
अँधेरों के सफ़र क्यों रौशनी से तय नहीं होते. 

हम अपने दिल को आख़िर किस तरह ये बात समझाएं,
जहाँ के रुख़ हमारी शायरी से तय नहीं होते.


5-


कुछ भी कीजिये किसी का डर नहीं रहा, 

ठीक से विरोध कोई कर नहीं रहा.

कोशिशों में खोट हो ये बात भी नहीं, 
पर समय किसी तरह गुज़र नहीं रहा.

वो जो कर रहे हैं मेरे काम का नहीं,
मैं जो चाहता हूँ कोई कर नहीं रहा.

जो किसी की ज़िंदगी की आस बन सके, 
बात में किसी की वो असर नहीं रहा.

इस लिये भी ज़िंदगी से निभ नहीं सकी,
मेरे सोच में अगर मगर नहीं रहा.

उसकी आस्था है लोकतंत्र में मगर,
बात - चीत वो किसी से कर नहीं रहा.

मेरे शेर बार - बार याद आयेंगे, 
कल में आप सब के बीच अगर नहींरहा.



2 comments:

  1. शानदार अभिव्यक्ति,
    जारी रहिये,
    बधाई।

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  2. इतने अनमोल अशार ...लाजवाब करने वाली गज़लें ....बहुत बहुत आभार

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आप यहां आये बहुत अच्छा लगा.
आपकी राय मेरे लिए बहुमूल्य है.