Friday, June 25, 2010

कविता

               
            आज एक कविता पढ़वाने का मन है. कविता पुरानी क्या काफी पुरानी है. हालांकि आज इस कविता के अन्त से सहमत नहीं हूं लेकिन जैसी थी सो वैसी है का सहारा लेकर कविता प्रस्तुत है. अब इस फार्मेट में रचनाएं नहीं लिखता. देखिए कैसी है-



          *
रोशनी के नाम पर


         *
रोशनी के नाम पर
कुछ टिमटिमाती लालटेनें
व्योम में ऊंचे टंगी उलटी
कि जैसे ढूंढती हों रास्ता
खुद का
निराशा से भरा मन लें.
*****

और नीचे झील
फैली
दूर धरती के क्षितिज तक
खूब गहरी और चक्करदार
जैसे आदमी का मन
कि जिसकी
थाह कोई
ले नहीं सकता.
*****
झील के इस ओर
मखमल के गलीचे सी
बिछी है दूब
जिस पर सरसराते खूब
सांप फन वाले
रौंदते जग को
अठखेलियॉं किल्लोल करते
पर नहीं चिन्ता
तनिक उस दूब की करते
सदा से जो
बिछी ही आ रही है
देह के नीच अभागी.
*****
झील के उस पार
ऊंचे पेड़
पंक्ति में खड़े चुपचाप
अपनी बेबसी पर
बहाते रोज ही आंसू
दोष देते उन हवाओं को
उड़ा जो ले गईं पत्ते सभी
पर एक भी ऐसी नहीं दिखता
कर सके जो उन हवाओं से बगावत.
*****
दृष्टि के है सामने
यह दृश्य
पूरे साठ वर्षों से
तथा संभावना
जिसके बदलने की
अनागत में नहीं देती दिखाई
दूर तक----





10 comments:

  1. जिस पर सरसराते खूब
    सांप फन वाले
    रौंदते जग को
    अठखेलियॉं किल्लोल करते
    पर नहीं चिन्ता
    तनिक उस दूब की करते
    सदा से जो
    बिछी ही आ रही है
    देह के नीच अभागी.
    बहुत अच्छी कविता गहरे भाव लिये। दूब की चिन्ता सां अगर करते तो आज ये हाल न होता । शुभकामनायें

    ReplyDelete
  2. कविता का अन्तः स्वर निराशा का है, आपने शब्द बिम्बों के विलक्षण प्रयोग किये हैं अपनी रचना में...पुराणी होगी लेकिन हमारे लिए तो नयी और मन भावन है...
    नीरज

    ReplyDelete
  3. प्रयोग बहुत अच्छे लगे और मेरे लिए भी कविता नयी है

    ReplyDelete
  4. आपके ब्लोग पर आ कर अच्छा लगा! ब्लोगिग के विशाल परिवार में आपका स्वागत है! अन्य ब्लोग भी पढ़ें और अपनी राय लिखें! हो सके तो follower भी बने! इससे आप ब्लोगिग परिवार के सम्पर्क में रहेगे! अच्छा पढे और अच्छा लिखें! हैप्पी ब्लोगिग!

    ReplyDelete
  5. आप अंत के बारे में बोले थे, एही से अंत के तरफ ध्यान गया...आज के हालात को देखते हुए सच है!!! कबिता का फ्लो आपके पकड़ का पहचान है बिसय पर!!

    ReplyDelete
  6. यथार्थ चित्रण ।

    ReplyDelete
  7. जिन्दा लोगों की तलाश!
    मर्जी आपकी, आग्रह हमारा!!


    काले अंग्रेजों के विरुद्ध जारी संघर्ष को आगे बढाने के लिये, यह टिप्पणी प्रदर्शित होती रहे, आपका इतना सहयोग मिल सके तो भी कम नहीं होगा।
    =0=0=0=0=0=0=0=0=0=0=0=0=0=0=0=0=

    सच में इस देश को जिन्दा लोगों की तलाश है। सागर की तलाश में हम सिर्फ बूंद मात्र हैं, लेकिन सागर बूंद को नकार नहीं सकता। बूंद के बिना सागर को कोई फर्क नहीं पडता हो, लेकिन बूंद का सागर के बिना कोई अस्तित्व नहीं है। सागर में मिलन की दुरूह राह में आप सहित प्रत्येक संवेदनशील व्यक्ति का सहयोग जरूरी है। यदि यह टिप्पणी प्रदर्शित होगी तो विचार की यात्रा में आप भी सारथी बन जायेंगे।

    हमें ऐसे जिन्दा लोगों की तलाश हैं, जिनके दिल में भगत सिंह जैसा जज्बा तो हो, लेकिन इस जज्बे की आग से अपने आपको जलने से बचाने की समझ भी हो, क्योंकि जोश में भगत सिंह ने यही नासमझी की थी। जिसका दुःख आने वाली पीढियों को सदैव सताता रहेगा। गौरे अंग्रेजों के खिलाफ भगत सिंह, सुभाष चन्द्र बोस, असफाकउल्लाह खाँ, चन्द्र शेखर आजाद जैसे असंख्य आजादी के दीवानों की भांति अलख जगाने वाले समर्पित और जिन्दादिल लोगों की आज के काले अंग्रेजों के आतंक के खिलाफ बुद्धिमतापूर्ण तरीके से लडने हेतु तलाश है।

    इस देश में कानून का संरक्षण प्राप्त गुण्डों का राज कायम हो चुका है। सरकार द्वारा देश का विकास एवं उत्थान करने व जवाबदेह प्रशासनिक ढांचा खडा करने के लिये, हमसे हजारों तरीकों से टेक्स वूसला जाता है, लेकिन राजनेताओं के साथ-साथ अफसरशाही ने इस देश को खोखला और लोकतन्त्र को पंगु बना दिया गया है।

    अफसर, जिन्हें संविधान में लोक सेवक (जनता के नौकर) कहा गया है, हकीकत में जनता के स्वामी बन बैठे हैं। सरकारी धन को डकारना और जनता पर अत्याचार करना इन्होंने कानूनी अधिकार समझ लिया है। कुछ स्वार्थी लोग इनका साथ देकर देश की अस्सी प्रतिशत जनता का कदम-कदम पर शोषण एवं तिरस्कार कर रहे हैं।

    आज देश में भूख, चोरी, डकैती, मिलावट, जासूसी, नक्सलवाद, कालाबाजारी, मंहगाई आदि जो कुछ भी गैर-कानूनी ताण्डव हो रहा है, उसका सबसे बडा कारण है, भ्रष्ट एवं बेलगाम अफसरशाही द्वारा सत्ता का मनमाना दुरुपयोग करके भी कानून के शिकंजे बच निकलना।

    शहीद-ए-आजम भगत सिंह के आदर्शों को सामने रखकर 1993 में स्थापित-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास)-के 17 राज्यों में सेवारत 4300 से अधिक रजिस्टर्ड आजीवन सदस्यों की ओर से दूसरा सवाल-

    सरकारी कुर्सी पर बैठकर, भेदभाव, मनमानी, भ्रष्टाचार, अत्याचार, शोषण और गैर-कानूनी काम करने वाले लोक सेवकों को भारतीय दण्ड विधानों के तहत कठोर सजा नहीं मिलने के कारण आम व्यक्ति की प्रगति में रुकावट एवं देश की एकता, शान्ति, सम्प्रभुता और धर्म-निरपेक्षता को लगातार खतरा पैदा हो रहा है! अब हम स्वयं से पूछें कि-हम हमारे इन नौकरों (लोक सेवकों) को यों हीं कब तक सहते रहेंगे?

    जो भी व्यक्ति इस जनान्दोलन से जुडना चाहें, उसका स्वागत है और निःशुल्क सदस्यता फार्म प्राप्ति हेतु लिखें :-

    (सीधे नहीं जुड़ सकने वाले मित्रजन भ्रष्टाचार एवं अत्याचार से बचाव तथा निवारण हेतु उपयोगी कानूनी जानकारी/सुझाव भेज कर सहयोग कर सकते हैं)

    डॉ. पुरुषोत्तम मीणा
    राष्ट्रीय अध्यक्ष
    भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास)
    राष्ट्रीय अध्यक्ष का कार्यालय
    7, तँवर कॉलोनी, खातीपुरा रोड, जयपुर-302006 (राजस्थान)
    फोन : 0141-2222225 (सायं : 7 से 8) मो. 098285-02666
    E-mail : dr.purushottammeena@yahoo.in

    ReplyDelete
  8. बहुत शानदार है संजीव जी। कविता कभी पुरानी नहीं होती। और खासतौर से इस तरह की कविता तो बिल्कुल भी नहीं। शानदार कविता है। पुरानी है ये आप जानते हैं पर मेरे लिए तो नई है । बिल्कुल तवे से उतरी हुई।

    ReplyDelete
  9. बहुत अच्छी कविता संजीव, समय आ गया है कि लोगों को बार-बार झकझोरा जाय, मौजूदा खतरों से आगाह किया जाय.

    ReplyDelete
  10. सुंदर अभिव्यक्ति. आपके ब्लाग पर आकर अच्छा लगा.. चिट्ठाजगत में आपका स्वागत है... हिंदी ब्लागिंग को आप नई ऊंचाई तक पहुंचाएं, यही कामना है....
    इंटरनेट के जरिए घर बैठे अतिरिक्त आमदनी के इच्छुक ब्लागर कृपया यहां पधारें-
    http://gharkibaaten.blogspot.com

    ReplyDelete

आप यहां आये बहुत अच्छा लगा.
आपकी राय मेरे लिए बहुमूल्य है.