इस वर्ष बाढ़ का प्रकोप कुछ ज्यादा ही देखने को मिला है। पिछले कई वर्षों का रिकार्ड टूट गया। आगरा में सन् 1978 में बाढ़ आयी थी। उस समय के कुछ चित्र अभी भी जेहन में हैं। तीन दिनों तक लगातार बारिश हुई थी। मैं उन दिनों गांव में था। बारिश बन्द होने पर पास में बहने वाली नदी को देखने गये तो पानी पुल से ऊपर होकर बह रहा था। पानी में सांप, चूहे आदि बहते जा रहे थे। लोगों ने लम्बे-लम्बे बांसों में हंसिए बांध रखे थे। जैसे ही काशीफल या कोई फल तैरता हुआ आता तो तुरन्त हंसिया मारकर खींच लेते। जब गांव से आगरा चले तो देखा कि जगह-जगह सड़क फंट गई थी। बड़ी मुश्किल से आगरा पहुंचे। आगरा में जीवनी मंडी उतरे तो घुटने-घुटने पानी था। उतने पानी में हम अपने घर पैदल चार किलोमीटर चलकर पहुंचे थे। रास्ते में चप्पल कहीं नींचे स्लिप हो गई तो मिली ही नहीं। खैर यहां आगरा में अभी इस बार हालात इतने बुरे तो नहीं हुए हैं। उस समय बताते हैं पानी का लेविल 508मीटर तक पहुंचा था इस बार अभी 499मीटर के पास है और इसके 500मीटर से ज्यादा बढ़ने के आसार नहीं हैं, लेकिन यमुना से सटे कुछ शहरी इलाकों में पानी आ पहुंचा है। आज सुबह कैलाश मन्दिर देखने गयां। वहां मुख्य मन्दिर में भीतर पानी भर गया है। मन्दिर के चारों तरफ सड़कें कमर तक पानी में डूब चुकीं थी। लेकिन आस्था इस पर भी भारी थी लोग दूर-दूर से उतने पानी में भी बाबा भोले के दर्शन के लिए आ रहे थे। मैं भीतर पहुंचा लेकिन पीछे के रास्ते से जहां ऊंचा होने के कारण पानी गलियों में नहीं था। आप सबके लिए कुछ चित्र खींचे। आप भी बाबा भोले के दर्शन करें। पानी में डूबे बाबा के दर्शन पता नहीं फिर कितने वर्षों के बाद होंगे।
और अब मेहताब बाग से ताजमहल की कुछ तस्वीरें
ये बाढ़ तो कुछ दिनों में उतर जायेगी। कुछ बर्बादी के निशान छोड़ेगी और कुछ खेतों में उपजाऊ नयी जमीन भी, लेकिन सोचता हूं कि जो दूसरी बाढें मुल्क में आयी हुई हैं उनसे कब निजात मिलेगी। मसलन, घुन की तरह फैल रहे भ्रष्टाचार की बाढ़, अकर्मण्य नेताओं की बाढ़, साहित्य में स्वयंभुओं की बाढ़, झोलाछाप डाक्टरों की बाढ़, आतंकवाद की बाढ़ आदि-आदि...............